50 हाथी और हजारों ग्रामीणों के अस्तित्व की लड़ाई का मूक दर्शक बना काला माटी महिलौंग कॉरीडोर

हर रात हो रहा संघर्ष, फसलों को नुकसान

हाथी मानव संघर्ष। काला माटी महिला हाथी कॉरिडोर स्थित सैकड़ों गांव की नियति बन गई है। एक और है ग्रामीण और दूसरी ओर झारखंड का राजकीय पशु हाथी। कॉरीडोर में अवस्थित सोना हाथी और सिल्ली प्रखंड के कई गांव हाल के दिनों में हाथियों से प्रभावित हैं। हाथी अलग-अलग झुंड में बैठकर किसानों के धान समेत अन्य फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं जिससे हाथी मानव संघर्ष बढ़ गया है। रात होते ही जंगल से निकलकर हाथी खेतों की ओर आ जाते हैं वहीं ग्रामीण भी उन्हें नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए हर तरह के उपाय करते हैं लेकिन अंततः जीत हाथियों की होती है और फसलों को भारी नुकसान होता है।

दर्जनों गांव और हजारों ग्रामीण प्रभावित

वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग झारखंड सरकार भी इस संघर्ष को कम करने में अब तक नाकाम रहा है हालांकि विभाग द्वारा ग्रामीणों को होने वाले जानमाल के नुकसान की भरपाई की जाति है। वन विभाग के समक्ष भी कोई विकल्प नहीं बचता क्योंकि एक ओर झारखंड के राजकीय पशु हाथी हैं तो दूसरी ओर ग्रामीण। काला माटी महिलाओं कॉरिडोर की बात करें तो धर्मपुर, गांव के नाम:- बरेंदा, गौरडीह, डोमादिह, बोनडीह, पाण्डूडीह, देवांसरना, कल्याणताड़, मरांकिरी,जिन्तु,डिब्बा डीह, बिरदीडीह, सोमडीह, जडिया,बाँधडीह, सलसूद, तेतला समेत अन्य गांव अभी प्रभावित हैं।

हाथी करते हैं कॉरिडोर का उपयोग

सदियों से हाथी काला माटी महिला कॉरिडोर का उपयोग करते आ रहे हैं। पहले हाथियों के पूर्वज इस रास्ते का इस्तेमाल करते थे अब उनकी पीढ़ी इसका उपयोग कर रही है। हाथियों के इस आवागमन को रोका तो नहीं जा सकता है लेकिन ग्रामीणों को जागरूक करने से हाथी मानो संघर्ष कम हो सकती है, इसके लिए वन विभाग को पूरी तरह से सक्रिय होकर काम करना होगा। हाथी कांची नदी पार करके तेतला जंगल होते हुए धरमपुर की ओर तो कभी स्वर्णरेखा पार करते हुए बंगाल या दलमा की ओर जाते हैं। ऐसे में रास्ते में मिलने वाले खेत में लगे फसलों को और ग्रामीणों को नुकसान होता है।

हाल के दिनों में बढ़ा संघर्ष

ऐसा नहीं कि यह संघर्ष हाल के दिनों में शुरू हुआ है यह संघर्ष वर्षों पुराना है। लेकिन इसकी प्रकृति बदल गई है अब कभी मानो तो कभी हाथी एक दूसरे के जानमाल को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस संघर्ष को रोकने के कई प्रयास राज्य सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किया गया लेकिन अब तक इसका कोई भी सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है जिससे हाथी मानव संघर्ष को रोका या कम किया जा सके।

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